आधुनिक भारतीय नारी पर हिंदी में निबंध

“ नारी तुम केवल श्रद्धा हो ,
 विश्वास रजत नग पग तल में ,
 पीयूष स्रोत - सी बहा करो ,
 जीवन के सुन्दर समतल में "।

1 . प्रस्तावना - 

                      जयशंकर प्रसाद ने बहुत पहले ही नारी की महत्ता को पुरुषों के जीवन के लिए अति आवश्यक बताया है । भारतीय नारी श्रद्धा , दया , ममता , मधुरता और गहरे विश्वास से युक्त है । उसका हृदय सुन्दर गुणों का खजाना है । वह स्वभावतः देवी है । दुःखियों पर दया करना , ममत्वपूर्ण अपन पुत्रों का पालन - पोषण करना , अपनी मधुरता से घर परिवार को सरस रखना , अपने विश्वास को पति पर अर्पित करके जन्म - जन्मान्तर तक पूजा करना - ये ही भारतीय नारी के लक्षण हैं । इन्हीं गुणों के कारण वह हमेशा हमारे सम्मान की पात्र रही है ।

Essay on Indian woman text image in hindi

2 . प्राचीन काल में नारी - 

                                     “ यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ” । जहाँ नारियों की पूजा होती है , वहाँ देवता निवास करते हैं । वैदिक काल में धार्मिक अनुष्ठान में नारी की उपस्थिति अनिवार्य थी । कोई भी क्षेत्र नारी के लिए - प्रतिबंधित नहीं था । युद्ध स्थल में नारी ने अपनी वीरता का प्रदर्शन किया । अपने पति को युद्ध क्षेत्र में खुशी से भेज देती थीं । आरती उतार कर रण क्षेत्र में भेजना , रण में कायरता न  दिखाने का संदेश देना और रण में पति के मारे जाने पर दःख प्रकट न करना , ये उनकी वीरता का परिचायक था । पति को वीरगति पाने पर वे कहा करती थीं। 
“ भल्ला हुआ जो मारियाँ , बहिणी म्हारा कंतु ।
 लज्जेनुं तु वयं सिंह , ज्यों घर आया अंतु ॥ " 
       पीठ दिखाकर अर्थात् युद्ध क्षेत्र में कायरता प्रदर्शित करने वाले पति को उस समय की नारी डरपोक पति की संज्ञा देती थीं , लेकिन युद्ध में वीरगति प्राप्त करने वाले पति के लिए दुःख प्रकट न कर वीर क्षत्राणी का परिचय देते हुए गौरव का अनुभव करती थीं । 
        भारत में मुस्लिमों के आक्रमण ने नारी के सम्मान को धूमिल किया । वह भोगविलास की सामग्री बन गई । सुरक्षा के लिए इस युग में अहिल्याबाई , रानी दुर्गावती  ने अपने जौहर दिखाकर भारतीय नारियों को बलिदानी भाव का संदेश दिया । 1857 ई . में स्वतंत्रता संग्राम में अपने आपको झोंक कर रानी लक्ष्मीबाई ने नारी हृदय की कंठित भावनाओं को ऊपर उठने हेतु आक्रोशित किया । 


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3 . आधुनिक नारी - 

                              सारे झंझावातों से जूझते हुए भी आज की नारी अपनी मर्यादा , लज्जा और सम्मान को सुरक्षित रखी हुई है , जो विश्व में अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं । आज वह ' लज्जा की गुड़िया ' नहीं ब ल्कि पुरुष की सहयोगिनी , जीवन संगिनी और सहधर्मिणी है । वह अपने घर और समाज के लिए सदा समर्पण करने को तत्पर रहती हैं । 

        आधुनिक युग की नारी पाश्चात्य सभ्यता में घुलती नजर आ रही है । वह अपने कर्तव्यों से विमुख होती प्रतीत हो रही हैं , जिसके कारण पारिवारिक विघटन भी होने लगा है । फिर भी वर्तमान काल में भारतीय नारी सभी क्षेत्रों में पुरुषों को चुनौती दे रही है । चिकित्सा , शिक्षा , राजनीति एवं सेवा के क्षेत्र में वह बढ़ - चढ़कर हिस्सा ले रही हैं । नारी आर्थिक दृष्टि से स्वंतत्र हो , शिक्षित हो , पुरुष की दासता से मुक्त हो , यह अच्छी बात है , किन्तु स्वतंत्रता की अतिरेक न पुरुष के लिए शुभ है और न नारी के लिए । पुलिस और प्रशासन जैसे कठोर कर्मों में भी वह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर रही है । वह कुशल वायुयान - चालिका , सैनिक , वक्ता , प्रवक्ता और मेधावी व्यावसायिका भी सिद्ध हो चुकी हैं । 
        इतना ही नहीं , अब तो उन्होंने पूरी दुनिया में सिद्ध कर दिखाया है कि महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा अधिक क्रियाशील , ईमानदार तथा कुशल प्रशासक होती है । अमेरिका और ब्रिटेन में ही चले जाएँ तो दुनिया के शक्तिशाली देशों में गिने जाते हैं , वहाँ भारत की महिलाएँ चिकित्सा , कानून तथा फिल्म निर्माण क्षेत्र में पुरुषों से कही आगे है ।
        भारत की आधुनिक महिलाओं की बात करते हुए हम केवल अंतरिक्ष विज्ञान प्रशासन तथा खेल को ही ले तो जो नाम सबसे पहले हमारे आते हैं वे है - कल्पना चावला , किरण बेदी एवं बच्छेद्री पाल । ये तीनों महिलाएँ अब भारतीय महिला के अदम्य साहस , बुद्धि कौशल और कर्तव्य निष्ठा का प्रतीक बन चुकी है । ये महिलाएँ किसी बहुत बड़ा या सम्पन्न परिवार से नहीं आयी है । न इन्हें अधिक अपने साहस और आत्मविश्वास के बल लोगों के विरोध या प्रतिकार पर ध्यान नहीं दिया और अपने लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ती रही ।
        कहने का तात्पर्य है कि अदम्य साहस और आत्मविश्वास के बल पर भारतीय महिलाओं ने पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई है । बहुत साधनों के न होते हुए भी उन्होंने लक्ष्य प्राप्ति में आने वाली कठिनाईयों के सामने कभी घुटने नहीं टेके । उन्होनें सिद्ध कर दिखाया कि अगर व्यक्ति में आत्मविश्वास , लगन साहस और दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो अभाव या अन्य कोई भी कठिनाई उसका रास्ता नहीं रोक सकती ।

4 . उपसंहार - 

                       पन्त ने कहा था , ' मुक्त करो नारी को ' आज वही नारी स्वयमेव अपने बंधन की जंजीरों को तोड़कर मुक्त हो रही है । आज की नारी संघर्ष नहीं , त्याग और ममता की देवी बने , वह शक्ति बने और दानवों का विनाश करे तो निश्चय ही वह नव - निर्माण की शक्ति बन सकती है , जो मनुष्य को देवत्व की ओर ले जाने में अपनी अहम् भूमिका निभायेगी ।

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