वृद्धावस्था के आनंद एवं कुंठाएं


1. प्रस्तावना :-


 " बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनर्गमन होता है " इस समय मनुष्य की इच्छाएँ तीव्र व मनुष्य जीवन की आशाएँ असीमित हो जाती हैं । वृद्धावस्था के आनंद एवं कुंठाएं सभी इच्छा व आशा की पूर्ति नहीं हो पाने के कारण निराश व हताशा जीवन में आ जाती है । संसार परिवर्तनशील है । इसके कण - कण में प्रत्येक क्षण परिवर्तन का चक्र चला करता है । आज जो बालक है , कल को वह वृद्ध हो जाता है । 

joys and frustrations of old age text image in hindi

प्राचीनकाल से ही मनुष्य की अवस्था को चार भागों में बाँटा गया है- बाल्यावस्था , युवावस्था , प्रौढ़ावस्था व वृद्धावस्था । प्रथम तीन अवस्थाओं में व्यक्ति स्वयं शक्ति का संचार पाता है । इन अवस्थाओं में वह असम्भव से असम्भव कार्य को भी कर सकने का सामर्थ्य रखता है , परन्तु वृद्धावस्था में व्यक्ति शारीरिक , मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है इच्छाओं की वृद्धि एवं आशाओं का बढ़ाव इस काल में चरम सीमा पर होता है । 

वृद्धावस्था के संबंध में विलियम शेक्सपीयर ने अपनी एकांकी ' As you like it ' में लिखा है कि यह जीवन की दूसरी ऐसी अवस्था है जिसमें मानव एक बार पुन : बच्चा हो जाता है । कवि के शब्दों में It is the second stage of man , man retires from active life. ' भाव यह है कि यह मनुष्य . वृद्धावस्था में अनेक का दूसरी अवस्था है जब मनुष्य अपने शरीर और मन की शक्तियों की क्षीणता के कारण जीवन के हर क्षेत्र में अपने को धीरे - धीरे अलग करने लगता है । ' वृद्धावस्था ' एक ओर जहाँ आनन्द और उत्साह से भर देने वाला शब्द है , वही दूसरी ओर असीमित कुण्ठा एवं निराशा का समय भी है । अगर एक ओर यह वरदान है तो दूसरी ओर अभिशाप भी है । 

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2. वृद्धावस्था की आशाएँ :-


 वृद्धावस्था के आनंद एवं कुंठाएं आशाएँ मन में जाग्रत होने लगती है । जीवन भर जीवन संग्राम से जूझने के बाद लम्बे अन्तराल के बाद कार्यों से मुक्ति मिलने लगती है । इस समय कार्यक्षेत्र से मुक्ति का होता है इसलिए कार्यक्षेत्र में समय का प्रतिबन्ध नहीं होता । सारी जिम्मेदारी पूर्ण हो जाने के कारण वृद्धावस्था तनावहीन ही नहीं होती बल्कि आनन्दित करने वाली भी होती है । चिन्ताहीन जीवन के कारण वृद्धों में आशावादी भावना भर जाती है । 

अपनी इच्छा से जीवन जीने का रवैया सबसे ज्यादा आशावान करता है । कार्यकाल में लम्बे समय के बाद कार्यों से मुक्ति मिलने लगती है । खानपान व वेशभूषा के प्रति वे जाग्रत व क्रियाशील हो जाते हैं । अधिकांश वृद्धजन प्रात : काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर योगादि से अपने स्वास्थ्य के प्रति जाग्रत हो जाते हैं । समूह में हँसी मजाक , वार्तालाप , मेल मुलाकात करने में उन्हें अपार आनन्द की प्राप्ति होती है । वृद्धावस्था के लिए शासन की ओर से बनाई गयी विशेष योजनाओं में वृद्धों को अनेक लाभ मिलता है । जैसे- बैंकों में अनेक योजनाओं का लाभ , यात्रा में आरक्षण के तहत वृद्धों को टिकट दर में रियायत भी दी जाती है ।

 समाज में विद्यालयों में वृद्धों को सम्मानित करने से वे बहुत खुश हो जाते हैं। इस प्रकार वे पारिवारिक व सामाजिक क्षेत्र में सम्मान एवं सुविधाओं की प्रगति से उनमें आत्मविश्वास व स्वयं की महत्ता का आभास होने लगता है जिससे वे जीवन के प्रति आशावान हो उठते हैं । ऐसा कहा जाता है कि वृद्ध एक माली की तरह ही होता है , जिस प्रकार माली अपने उपवन को देखकर खुश जाता है , क्योंकि उस उपवन में उसके जीवन के श्रम का दर्शन होता है उसी प्रकार वृद्धजन अपने परिवार रूपी उपवन को देखकर आनन्दविभोर होकर झूम उठते हैं ।




 3. वृद्धावस्था की कुण्ठाएँ ' बुढ़ापा आह ! जवानी वाह ! :-


 निराशाओं के परिपेक्ष्य में हम उपर्युक्त विचारों में वास्तविकता पाते हैं । बुढ़ापे में हर क्षेत्र में अपमान एवं हर समय तनाव ( अगर समाज के लोग अच्छा व्यवहार न करें तो ) के कारण जीवन दुःख , संताप एवं आँसुओं से भरा होता है । यह एक ऐसी अवस्था है जब आँखों की रोशनी कम हो जाती है , हाथ पैर जवाब दे जाते हैं , हाथों पैरों में झुर्रियों की वजह से खाल लटक जाती है । आज समाज में स्थिति ये है कि माता - पिता मिलकर अपनी चार सन्तानों को पाल सकते हैं , किन्तु चार सन्तानें मिलकर माता पिता की देखभाल नहीं कर सकतीं ।

 हमारे माता - पिता जब तक हम स्वयं आश्रित रहते हैं , हम सह लेते हैं , परन्तु जब वे हम पर आश्रित होते हैं , तब सच्चाई कुछ और ही होती है । वृद्धजनों को छोटी - छोटी बातें भी ठेस पहुँचाती हैं । अपमान वृद्धावस्था में असहनीय हो जाता है । आज मर्यादाओं की तटस्थता नई पीढ़ी स्वीकार नहीं कर पा रही है । वे वृद्धों की उपेक्षा व निरादर करने से नहीं हिचकते , अत : आयु वर्ग का सामंजस्य वृद्धों को अपने प्रति उपेक्षा लगने लग जाती है।

 Tennyson ने बुढ़ापे की व्यथा को अपने नाटक में कुछ इस प्रकार व्यक्त किया है । " Old Order changeth yielding place to new " अर्थात् हर पुरानी चीजों को अन्त में नयी चीजों ( युवा ) ( शक्ति ) को स्थान देना होता है । बूढ़ा व्यक्ति भी जीवन से थककर भगवान से यही प्रार्थना करता है कि ' हे प्रभु ' ! अब तो अपनी शरण में ले लो । 


4. उपसंहार :- 


व्यक्ति जीवन भर स्वच्छन्दता से जीवन जीता है , परन्तु वृद्धावस्था में बच्चों का रोकटोक उनमें निराशा उत्पन्न कर देती है । ज्यादा रोकटोक उन्हें अच्छा नहीं लगता । बात - बात की टोकाटाकी उन्हें निराशावादी बना देता है । समाज के लोगों को चाहिए कि वे वृद्धों के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करें । उनकी भावनाओं का ख्याल रखते हुए उनके अनुभवों का लाभ उठायें । उन्हें हँसते देखकर , जीवन के सुख को पाओ । उनके सानिध्य को पाकर , जीने का गुरु मंत्र पाओ। वृद्धावस्था के आनंद एवं कुंठाएं। 


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