गरीबी (Poverty) की समस्या पर लेख

दोस्तों आज के इस Post में आप पढ़ेंगे गरीबी की समस्या  (Poverty problem) पर सरल शब्दों में एक लेख हिंदी में तो चलिए प्रारम्भ करते हैं। 

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गरीबी का अर्थ एवं परिभाषा :- 

गरीबी से अभिप्राय उस न्यूनतम आय से हैं जिसकी एक परिवार को अपनी आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आवश्यकता होती है , और जिसे वह परिवार जुटा पाने में असमर्थ होता हैं । भारतीय अर्थ व्यवस्था की एक गंभीर समस्या है निर्धनता । निर्णानता या गरीबी का अर्थ ऐसे निर्धन से है जिसके पास जीवन यापन के लिए आवश्यक वस्तुओं का अभाव होता हैं ।

" गरीबी के प्रकार " ( Types of Poverty ) :- 

गरीबी के निम्नलिखित प्रकार हैं -
  • शहरी गरीबी ( Urban Poverty ) 
  • ग्रामीण गरीबी ( Rural Poverty ) 

( 1 ) शहरी गरीबी ( Urban Poverty ) :- 

शहरी गरीबी का आशय ऐसी जनसंख्या से है जो शहरों में निवास करते हैं , वे नौकरी , व्यवसाय आदि कार्यों में लगे रहते हैं । यदि वे इन कार्यो से इतना नहीं कमा पाते कि अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकें , तो वे निर्धन की श्रेणी में आ जाते हैं । इस अवस्था में मनुष्य की न्यूनतम आवश्यकताएं भी पूरी नहीं हो पातीं । जैसे रोटी , कपड़ा तथा मकान । इसे ही शहरी गरीबी कहा जाता है । इस संबंध में भारतीय योजना आयोग ने एक मापदंड के अनुसार निर्धारित किया है कि जिस व्यक्ति को शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी से कम शक्ति अपने भोजन से प्राप्त होती है वह गरीबी के नीचे स्तर पर जीवन यापन करता हैं । बाजार मूल्यों के आधार पर सन्  1979-80 में शहरी क्षेत्रों में 88 रूपये प्रति व्यक्ति प्रतिमाह की आय को आधार माना गया । आर्थिक सर्वे के अनुसार 1999-2000 में शहरी , गरीबी का प्रतिशत 23.62 था।

( 2 ) ग्रामीण गरीबी ( Rural Poverty ) :- 

भारत की लगभग 75 % जनसंख्या ग्रामों में निवास करती हैं , इनका मुख्य व्यवसाय कृषि है , लेकिन कृषि की दशा अत्यन्त गिरी हुई हैं । भारत में प्रतिवर्ष प्राकृतिक आपदाओं ( बाढ़ , सूखा , अकाल आदि ) से करोड़ों रूपये की फसल नष्ट हो जाती हैं । सिंचाई व्यवस्था समुचित नहीं हैं , तथा कृषि कार्य हेतु आधुनिक तकनीक को भी पूर्णतः उपयोग में नहीं लाया जाता हैं । जिसके कारण भारत का बहुसंख्यक किसान इतनी पैदावार नहीं कर पाता है कि उसकी न्यूनतम आवश्यकताएँ पूरी हो सके । 
         उसे अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तथा खेती में लगाने के लिए ऋण लेना पड़ता है । इस कारण वह निर्धन हो जाता है । इसे ग्रामीण निर्धनता कहते हैं । भारतीय योजना आयोग ने गरीबी के माप के लिए एक मापदण्ड निर्धारित किया हैं । इस मापदंण्ड के अनुसार जिस व्यक्ति को ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी से कम शक्ति अपने भोजन से प्राप्त होती हैं वह निर्धनता के नीचे स्तर पर जीवन यापन करता हैं । बाजार मूल्यों के आधार पर सन् 1979-80 में ग्रामीण क्षेत्रों में 76 रूपये प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह की आय को आधार माना गया है । वर्तमान युग में मूल्यों में वृद्धि के कारण इस सीमा में क्रमशः वृद्धि हो रही है।

गरीबी के कारण ( Reasons of Poverty) :- 

भारत में गरीबी के मुख्य कारण निम्न लिखित हैं -

( 1 ) जनसंख्या वृद्धि : -

भारत में प्रतिवर्ष जनसंख्या 2.6 प्रतिशत प्रति हजार की दर से बढ़ती हैं । जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि होती है , उस गति से उत्पादन एवं साधनों की मात्रा में वृद्धि नहीं होती है जिससे देश का आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है । मांग एवं पूर्ति में असंतुलन के कारण मूल्यों में वृद्धि होती हैं और लोगों की क्रय शक्ति घटती हैं । अतः लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते और वे निर्धनता की अवस्था में जीवन यापन करते हैं ।

( 2 ) बेरोजगारी : - 

बेरोजगारी दूसरों पर आश्रित बना देती हैं । व्यक्ति को बेरोजगार होने पर अपने तथा परिवार के सदस्यों के भरण - पोषण के लिए दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता हैं । उत्पादन साधनों के अभाव में बेरोजगारी बढ़ती हैं तथा वास्तव में बेरोजगारी निर्धनता को जन्म देती हैं ।

( 3 ) प्राकृतिक साधनों का अपूर्ण विदोहन : - 

भारत में प्राकृतिक साधनों की प्रचुरता है , किन्तु उत्पादन साधनों के अभाव में इन साधनों का पूर्ण विदोहन नहीं हो पाया । यहाँ तक की कृषि एवं उद्योग में भी उत्पादकता की संम्भावनाऐं विद्यमान हैं । इसीलिए कहा जाता है कि भारत एक धनी देश है , परन्तु वहाँ के निवासी निर्धन हैं ।

( 4 ) बीमारी व निम्न स्वास्थ्य स्तर :-

देश में मलेरिया , चेचक , टी.बी. , कैंसर आदि रोगों से पीड़ित करोड़ों व्यक्ति हैं जिसके कारण उद्योगों , कारखानों आदि से उन्हें प्रायः अवकाश लेना पड़ता हैं । इससे एक ओर उत्पादन तो घटता ही है तथा दूसरी ओर श्रमिकों का रोजगार भी कम होता हैं । निम्न स्वास्थ्य स्तर के कारण लोग कम आयु में ही मर जाते हैं । जिसके कारण अनुभवी एवं कुशल श्रमिकों की कमी हो जाती है । इससे देश की आर्थिक उन्नति प्रभावित होती है तथा निर्धनता बढ़ती जाती हैं ।

( 5 ) साक्षरता का अभाव : - 

भारत में अशिक्षा निर्धनता का प्रमुख कारण हैं । सन् 1981 की जनसंख्या के आधार पर देश की कुल जनसंख्या में से केवल 36 % लोग साक्षर थे । इतना ही नहीं तकनीकी शिक्षा , प्रशिक्षण आदि की सुविधाएं और भी कम हैं । इसीलिए यहाँ उद्योगों और कारखानों में कुशल श्रमिक नहीं मिल पाते हैं । यह सत्य है कि औधोगिक प्रगति के लिए कुशल एवं तकनीकी श्रम के बिना आर्थिक विकास नहीं किया जा सकता ।

( 6 ) मूल्य वृद्धि : - 

भारत में मजदूरी एवं आय के स्त्रोतों में वृद्धि की तुलना में मूल्यों में अधिक वृद्धि हुई हैं । फलतः श्रमिकों की मौद्रिक आय में तो वृद्धि हुई हैं , किन्तु वास्तविक आय कम हो गई हैं ।

( 7 ) न्यून मजदूरी : - 

गरीबी के कारणों में न्यून मजदूरी एक महत्वपूर्ण कारण है भारत में मजदूरी की दरें अन्य देशों की तुलना बहुत कम हैं । विद्यमान मजदूरी की दरों के कारण भर पेट भोजन प्राप्त करना भी कठिन कार्य हैं । इसके अलावा श्रमिकों को वर्ष भर कार्य भी प्राप्त नहीं होता । गरीबी की यह समस्या ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक पायी जाती हैं ।

( 8 ) कृषि की पिछड़ी अवस्था :-

हमारे देश में कृषि अन्य देशों की तुलना में पिछड़ी हुई अवस्था में हैं । तथा अधिकांश जनसंख्या कृषि क्षेत्र में संलग्न हैं । परन्तु कृषि क्षेत्र में निम्न उत्पादकता के कारण लोगों को आय कम प्राप्त होती हैं । जिससे गरीबी में वृद्धि होती हैं ।

( 9 ) कार्य कुशलता में कमी :-

निर्धनता का एक कारण यह भी है कि यहाँ के श्रमिकों की कार्यकुशलता अत्यधिक कम है , जबकि भारतीय श्रमिकों की तुलना में अन्य विकसित देशों के श्रमिकों की कार्यकुशलता तीन गुना अधिक हैं । कार्यकुशलता में कमी के कारण उत्पादन कम होता है , और इसका प्रभाव राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर पड़ता है , और निर्धनता से देश का पीछा नहीं छूटता ।

( 10 ) नियोजन के समान लाभ प्राप्त न होना :-

भारत में पिछले 50 वर्षों में आर्थिक विकास के अनेक कार्यक्रम का क्रियान्यवन हुआ हैं । इसका लाभ सभी व्यक्तियों को मिला है लेकिन बराबर नहीं । जैसे- हरित क्रांति से बड़े कृषकों को लाभ हुआ हैं । आधुनिक तकनीकी के साधनों से रोजगार के अवसर कम हुए हैं । जिसके कारण गरीबी में वृद्धि हुई हैं ।

गरीबी निवारण के लिए सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम (Poverty eradication Programmes) :- 

स्वतंत्रता के बाद भारत में गरीबी जैसी जटिल समस्याओं को दूर करने के लिए सरकार द्वारा अनेक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं जो निम्नानुसार हैं -

गरीबी निवारण के लिए सरकार द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रम : -
  • पंचवर्षीय योजनाएं 
  • साक्षरता में वृद्धि 
  • श्रम गहन तकनीक
  • उचित मजदूरी का भुगतान 
  • कृषि में सुधार 
  • स्वास्थ्य में सुधार 
  • जनसंख्या पर नियंत्रण 
  • नेहरू रोजगार योजना 
  • लघु एवं कुटीर उद्योग 
  • सामाजिक बाधाओं को दूर करना 

( 1 ) पंचवर्षीय योजनाएं :- 

गरीबी जैसी जटिल समस्या को दूर करने के लिए सरकार द्वारा पंचवर्षीय योजनाओं को लागू किया गया । जिसके अंतर्गत गरीब जनता को उसके मूलभूत आवश्यकता की सामग्री प्रदान की गयी है । योजना का मुख्य उद्देश्य गरीबों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाना , लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास करना , तथा रोजगार हेतु कार्यक्रम का निर्माण करना हैं ।

( 2 ) साक्षरता में वृद्धि :-

निर्धनता से छुटकारा पाने के लिए साक्षरता में वृद्धि करनी होगी । प्रचलित शिक्षा पद्धति में सुधार करना होगा । सैद्धान्तिक शिक्षा के साथ ही व्यवसायिक तथा = व्यवहारिक शिक्षा का विकास करना होगा । ग्रामों में कृषि शिक्षा का विस्तार करना होगा । इससे निर्धनता दूर की जा सकती है ।

( 3 ) श्रम गहन तकनीक :- 

निर्धनता दूर करने के लिए कृषि तथा उद्योग दोनों में ही श्रम गहन तकनीक को अपनाया जाना चाहिए ताकि अधिक से अधिक श्रमिकों को रोजगार मिले । तथा निर्धनता पर नियंत्रण किया जा सके ।

( 4 ) उचित मजदूरी का भुगतान :-

उद्योग तथा कृषि क्षेत्र में कार्यरत श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी सुलभ कराके भी गरीबी कम की जा सकती है । हाल ही में देश की सरकार ने उद्योग तथा कृषि के क्षेत्र में कार्यरत श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी दर घोषित की है । इस प्रकार मजदूरों को उचित न्यूनतम मजदूरी देकर भी निर्धनता दूर की जा सकती है ।

( 5 ) कृषि में सुधार :-

भूमि में स्थायी सुधार , सिंचाई सुविधाएं , उत्तम बीज , उर्वरक खाद , नये कृषि उपरकणों का उपयोग , आर्थिक सहायता , चकबन्दी तथा सहकारिता को प्रोत्साहित करके कृषि में स्थायी सुधार किया जा सकता है । जिससे कृषकों की आय में वृद्धि होगी तथा निर्धनता धीरे - धीरे दूर होगी ।

( 6 ) स्वास्थ्य में सुधार :-

सरकार तथा उद्योगपतियों को यह प्रयास करना होगा कि श्रमिकों एवं कर्मचारियों के स्वाथ्य में सुधार हो सके और भयंकर रोगों से न्हें छुटकारा मिल सके । इसके लिए चिकित्सा संबंधी सुविधाओं को बढ़ाना होगा तथा श्रमिकों एवं कर्मचारियों के लिए उचित आवास की व्यवस्था करनी होगी ।

( 7 ) जनसंख्या पर नियंत्रण :-

तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या , आर्थिक विकास को पंगु बना देती है । अतः जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण लगाना चाहिए । जनसंख्या पर नियंत्रण करने हेतु परिवार नियोजन कार्यक्रमों को व्यापक रूप में क्रियान्वित करना चाहिए।

( 8 ) नेहरू रोजगार योजना :-

इस योजना का क्रियान्वयन 28 अप्रैल 1989 को हुआ इस योजना पर 2100 करोड़ रूपए व्यय करने का प्रावधान है । देश के सम्पूर्ण 4.40 करोड़ गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों में से एक परिवार के एक सदस्य को प्रतिवर्ष 50 से 100 दिन का रोजगार उपलब्ध हो सके । योजना पर 80 प्रतिशत केन्द्र सरकार एवं 20 प्रतिशत राज्य सरकार के व्यय का प्रावधान है । प्रत्येक ग्राम पंचायत को प्रतिवर्ष 80 हजार रूपए से 1 लाख रूपए प्राप्त होंगे । इस योजना के तहत 30 प्रतिशत स्थान महिलाओं के लिए सुरक्षित रहेंगे ।

( 9 ) लघु एवं कुटीर उद्योग :-

सरकार ने गरीबी तथा बेरोजगारी कम करने के लिए लघु तथा कुटीर उद्योगों के विकास हेतु विशेष प्रयत्न किये हैं । स्वरोजगार योजना को प्रोत्साहन देने के लिए बहुत अधिक धन व्यय किया जा रहा हैं ।

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( 10 ) सामाजिक बाधाओं को दूर करना :-

समाज में व्याप्त विभिन्न बुराईयाँ जैसे वेश्यावृत्ति , नशाखोरी , जुआ आदि को करके गरीबी पर नियंत्रण लगाया जा सकता है।

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