हॉस्टल के वह दिन

  • हॉस्टल का अनुभव :

      यह बात तो मैं भी मानता हूं की हॉस्टल जिंदगी जीना सिखाती है।  हॉस्टल में हर एक छोटे - बड़े फैसले को अपने से लेने का एक अनुभव प्राप्त होता है।  हॉस्टल में तरह तरह के लोग रहते हैं और अलग-अलग प्रकार के अनुभव मिलते रहते हैं।  वैसे तो हर इंसान को एक बार हॉस्टल का अनुभव जरूर ले लेना चाहिए यहां कुछ ऐसे तो जरूर मिलते हैं जो आपको बहुत कुछ सिखा देती है।

My Hostal Life Story text image in Hindi

  • कंधों पर जिम्मेदारियां :
      हॉस्टल में रहने से अपना काम स्वयं करना पड़ता है।  जैसे कपड़े धोना अपनी जरूरत का सामान लाना खाने पीने का ध्यान रखना उठने का ध्यान रखना और भी बहुत सी ऐसी जिम्मेदारियां कंधे पर आ जाती है जिससे हम बहुत कुछ सीख जाते हैं।

  • हॉस्टल के वह दिन :

     लेकिन हॉस्टल के वह दिन जब मेरा उम्र 10 वर्ष का था और साल था 2007 , कुछ घरेलू परेशानियों के कारण मेरा दाखिला करा दिया गया हॉस्टल में।  अब मैं इतना छोटा था कि इस समय ना तो मैं अपने कपड़े धो सकता था।
        और ना ही अपने जरूरी के सामान को समय पर ला सकता और खाने-पीने का भी ध्यान अच्छे से नहीं रख सकता था।  लेकिन अचानक से यह सब कुछ मुझे करना पड़ा वहां हॉस्टल में सुबह-सुबह 5:00 बजे उठा दिया जाता था।  और उठने के बाद तुरंत स्नान करना और पूजा के लिए वहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराना पढ़ता था।

  • सुबह का नाश्ता :

     उसके बाद जल्दी से जाओ नाश्ता करने नाश्ते मैं रोज का रोज पोहा और साथ में चाय एक बार बांट देने के बाद जो बचा रहता था, उसके लिए लड़ाई हो जाता था। किसी किसी का तो जूठा प्लेट उसी में गिर जाता था। लेकिन फिर भी भूखे लोग नाश्ता लूट लूट कर खाते थे।

  • हॉस्टल की पुरानी दास्तान :

     जैसे एक दिन मैंने हॉस्टल में कुछ गलत काम कर दिया था। जो कि मैं इस पोस्ट में नहीं बता सकता लेकिन यह बात वहां के शिक्षक को किसी ने बता दिया और हमारा उपस्थिति दर्ज कराने का समय शाम को 8:00 बजे रोजाना होता था।

         और कुछ दिन पहले मैं ऐसे ही किसी लड़के को गलती करने की सजा भुगतते हुए देखा था।  क्या गजब मारे थे बांस का डंडा था पूरा लाल कर दिया मार के अब उस दिन मैं पूरा दिनभर डरता रहा कि आज शाम को मेरे साथ क्या होगा, और उस दिन मैं बहुत ज्यादा डर गया था।

         और शाम को पिटाई तो होने ही वाली थी।  लेकिन उस समय का मेरा सोच भी क्या गजब का था जिसको आज भी सोचता हूं तो बहुत ज्यादा हंसी आता है अपने आप के ऊपर।

         मैंने उस दिन अपना लॉकर खोला और मेरे पास जितने भी कपड़े थे लगभग 5 सेट पूरा अपने बदन में सहेज लिया और पूरी तरह से फुला फुला दिखने लगा जिसको देखने के बाद हॉस्टल के दोस्त खूब मजे लिए लेकिन मुझे क्या पता कि मैं ऐसे 5 सेट पहन लूंगा तो किसी को पता भी चलेगा।

         फिर उस दिन दोस्त लोग मेरे ऊपर इतना हंसे और इतना मजाक उड़ा है। कि मैं भागता हुआ गया और अलग से जितने कपड़े पहने थे एक को छोड़कर सारे उतार दीया। अब मैं भी सोच लिया जो होगा सो देखा जाएगा।

          शाम का समय हुआ उपस्थिति दर्ज हुई और शायद सर को मेरी गलती याद नहीं रहा और उस दिन मैं बच गया तब जान में जान आई।

  • यह उन दिनों की बात है  :

अब कुछ ऐसे पहलू भी हैं जो सोचते ही हंसी के ठहाके फूटने लगते हैं। जैसे उन दिनों कपड़ा धोने की बारी आती थी तो जितने भी गंदे कपड़े होते थे एक बार पानी में डूबाए और उसे निकाल कर सीधे सुखा दिए उन कपड़ों में साल भर में बरसाती लग गए जैसे बीच-बीच में काले धब्बे।

  • हमारे रूम पार्टनर की कहानी :

     अब सुनो हमारे रूममेट की कहानी हम तीन लोग एक रूम में रहते थे जिसमें एक ऐसा लड़का था जिसको रात में यदि टॉयलेट लगे तो वह टॉयलेट रूम तक भी जाने से डरता था। और उसको लगभग हर दूसरे से तीसरे दिन रात को टॉयलेट लगता ही था।
               क्या करता बेचारा वह अपने स्नान करने वाले मग में ही मार देता था। और मच्छरदानी के ऊपर टांग देता था फिर क्या था पूरी रात इतना महकता सुबह उठकर देखते तो क्या देखते उसको बोलने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता था बड़ा जिद्दी लड़का था।

  • वह पुराने यार :

     और साथ में था एक god gifted दोस्त जिसका नाम था नीतेश उस समय का सीन कुछ ऐसा था कि हम दोनों एक दूसरे से बहुत लगाओ रखते थे।

              लेकिन जलन की भावना भी एक दूसरे से उतनी ही अधिक थी वह समय आज भी सोच कर बहुत हंसी आती है कि हम से मिलने के लिए हमारे घर वाले 2 से 3 महीने में एक बार आया करते थे और तोहफे में वहीं उस समय का बाबू मिक्चर और टू इन वन वाला बिस्किट अब हम तो हुए बहुत खुश बस अपना एक लॉकर था।

              जिसमें हम अपनी सारी खाने की चीजें कपड़े उसी में रखा करते थे और जब हमारे पास वह बाबू मिक्चर रखा रहता था तब हर 2 मिनट में अपने लॉकर खोलकर मिक्चर का एक- एक  टुकड़ा निकाल कर खाया करते थे।  और यह प्रक्रिया लगभग आधे घंटे से एक डेढ़ घंटे तक चलता रहता था एक और तो खाने का भी मन करता था बहुत ज्यादा।

              लेकिन फिर लगता था बस इतना ही तो है आज ही सब खत्म हो जाएगा तो कल के लिए क्या रहेगा बस यही सोचकर मिक्चर का एक-एक टुकड़ा खाया करते थे। और साथ में था एक और दोस्त जिसका नाम था योगेश जिसके माता पिता उससे मिलने लगभग हर महीने आया करते थे।और उसके लिए बहुत ज्यादा खाने के लिए मिठाइयां लाते थे। जैसे मिक्चर, बिस्किट फिर क्या था हम उसे अपना दोस्त बनाए और उससे वह मिक्चर इमोशनल ब्लैकमेल कर के रोज खाया करते थे।

              लेकिन उस योगेश की दोस्ती या तो मेरे से हो जाती या तो नितेश से जब तक दोस्ती मेरे से रहती तब तक नितेश से दोस्ती उनकी नहीं जमती तो ऐसा लगभग 5 -6 माह तक मेरे से दोस्ती था उसके लास्ट के 5 - 6 महीने तक नितेश से दोस्ती हुआ और अपने अपने समय काल में अपना अपना फायदा उठाते रहे।
   
       सच में यार हॉस्टल की जिंदगी क्या गजब का था। कहीं खट्टा तो कहीं मीठा सच कहूं तो मैं हॉस्टल की जिंदगी को कभी नहीं भूल सकता जब मैं हॉस्टल के उन दिनों को याद करता हूं। तब मेरे चेहरे पर एक अलग सी मुस्कान आ जाती।

      "क्या आप भी हॉस्टल में रहे हैं यदि हां तो कृपया अपने भी अनुभव यहां पर साझा करें क्योंकि हॉस्टल के कहानी और अनुभव पढ़ने में अलग ही आनंद की अनुभूति होती है।"
धन्यवाद.....!!

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